व्यंग्य
उनका छुट्टी से आना!
ओम वर्मा
शायद वे देश के पहले राजनेता हैं जिनका दृश्यपटल पर न होना उनके होने से ज्यादा चर्चा में रहा। जब वे ‘सक्रिय’ थे तो पार्टी के वरिष्ठजनों का भी अवलंबन थे। वे नहीं थे तो सोशल मीडिया के सारे चुटकुलेबाज भी परेशान थे क्योंकि अब तो उन्हें आलिया भट्ट भी कोई मौका नहीं देती।
किसी वीआईपी को जब मुख्य परिदृश्य से दूर करना होता है तो उसके लिए ‘लंबी छुट्टी पर भेजने’ जैसी सम्मानजनक सूक्ति इस्तेमाल की जाती है जबकि छोटे मोटे के लिए‘निलंबन’। गैर कांग्रेसियों को उनका लंबी छुट्टी पर जाना शायद पार्टी हित में उठाया गया ऐसा ही कोई ‘सम्मानजनक’ कदम लगा होगा। लेकिन एक वरिष्ठ पार्टीजन के अनुसार वे ‘चिंतन-मनन’ के लिए एकांतवास पर गए थे। चिंतन तो उनका पुराना पेशन (Passion) है जिसे वे संसद में बीच सत्र में आँखें बंद कर भी कर लिया करते थे। मगर उनके इस चिंतन प्रवास से पार्टी को और कुछ हासिल हो न हो ‘चिंता’ जरूर हासिल हो गई थी। कहाँ तो पार्टी के कई वरिष्ठजन अध्यक्ष के रूप में उनका राजतिलक देखना चाहते थे और कहाँ वे कृष्ण की तरह ब्रज में गोपियों को रोता बिलखता छोड़ चले गए! जयपुर अधिवेशन में उनकी ताजपोशी के समय माते ने जहर के नाम से डरा तो दिया था मगर कान में यह मंत्र नहीं फूँका कि तैरना सीखने के लिए पानी में उतरना ही पड़ता है, जमीन पर चिंतन करने से कोई तैरना नहीं सीख सकता। कुछ पार्टीजनों की इच्छा थी कि शायद वे अवकाश पर जाने के बजाय हनुमान जी की तरह संकल्प लें कि कांग्रेस को सत्ता में लौटाए बिना ‘मोहि कहाँ बिश्राम!’, मगर उनकी आवाज बैंड-बाजे के शोर में दुल्हन की सिसकियों की तरह दब कर रह गईं।
बहरहाल हाशिए पर सिमटकर आईसीयू में दाखिल कांग्रेस का इस समय लोकतंत्र की रक्षा के लिए एक मजबूत पार्टी के रूप में पुनर्जीवित होना बेहद जरूरी है। शायद उन्हें अपने दल की ऐसी स्थिति देखकर सियासत से कुछ कुछ वैसी ही विरक्ति हो गई थी जैसी कभी राजकुमार सिद्धार्थ को एक रोगी, एक जईफ(अति वृद्ध व्यक्ति) और एक शवयात्रा देखकर राजपाट से हुई थी। उस विरक्ति ने तो सिद्धार्थ को ‘बुद्ध’ बना दिया मगर चौथा स्तंभ यह जानने को बेकरार है कि क्या ये भी किसी ‘बोधि वृक्ष’ जैसी शरणस्थली में चिंतन- मनन करके लौटे हैं या अपने पसंदीदा खेल ‘पेराग्लाइडिंग’ का आनंद ले रहे थे। क्या उनकी क्षुधा भी किसी ‘सुजाता’ ने शांत की है?
मेंढक जैसे कुछ शीत रुधिर(cold blooded) वाले जीव बिलों में छुपकर कुछ समय के लिए एक निष्क्रिय जीवन(हायबरनेशन) बिताते हैं। ऐसे ही कुछ पक्षी लंबी दूरियों के लिए माइग्रेट कर जाते हैं। हालाँकि हायबरनेशन और माइग्रेशन से लौटकर दोनों तरह के जीव एक नई ऊर्जा से भर जाते हैं। क्या हमारे युवराज का लौटना भी उनके व कांग्रेस के लिए ऐसा ही कायाकल्प करने वाला साबित होगा? या हो सकता है कि जैसे सुभाष बाबू के विलुप्त होने के अनसुलझे रहस्य पर कुछ कुछ अंतराल से कोई न कोई नई कहानी पेश कर दी जाती है और गरमागरम बहस होने लगती हैं, या जिस तरह हेमलेट नाटक के राजकुमार हेमलेट के‘पागलपन’ को लेकर समालोचकों में आज भी बहस होती रहती है कुछ वैसे ही अगले कई वर्षों तक देश में जेरे-बहस यह मुद्दा बना रहेगा और किताबें लिखी जाती रहेंगी कि हमारे युवराज अज्ञातवास पर कहाँ और क्यों गए थे, या उनका अवकाश पर जाना सचमुच चिंतन था या महज देशाटन था। और लाख टके का सवाल यह कि यदि चिंतन था तो उस चिंतन-मनन के मंथन से जो नवनीत उपजा है उससे क्या सचमुच उनका, पार्टी का या देश का कुछ भला हो सकेगा?
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संपर्क: 100, रामनगर एक्सटेंशन, देवास 455001
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