Monday, 28 November 2016

सुबह सवेरे, 29.11.16 में - हम नहीं, अब वे हमारी नकल करते हैं!



व्यंग्य
                 अब वे हमारी नकल करते हैं!
                                                                                     ओम वर्मा
म पश्चिमी देशों की नकल करते हैं यह जुमला पंद्रह लाख रु. हमारे बैंक खातों में जमा करवाने वाले जुमले की तरह अब अप्रासांगिक हो गया है। जिस तरह यह राशि जमा करवाने का  दावा करने वालों ने स्वयं को वचनमुक्त घोषित कर दिया है वैसे ही मेरे देशवासियों को अब स्वयं को पश्चिमी देश, विशेषकर अमेरिका की नकल करने के आरोप से भी स्वयं को मुक्त समझ लेना चाहिए। बल्कि अब हम यह बात छाती ठोककर कह सकते हैं कि अमेरिका वाले हमारी नकल कर रहे हैं।
     सबसे पहली नकल तब हुई जब पिछली सदी के सातवें दशक में हिप्पीवाद ने वहाँ अपनी जड़ें जमाई थीं। हमारे ऋषि-मुनियों की तरह वहाँ के युवा वर्ग ने लंबे बाल रखने व साधुओं की तरह चिलम- गाँजे के सेवन से लेकर हरे रामा-हरे कृष्णा के उद्घोष तक की नकल शुरू कर दी थी। इन दिनों वहाँ के युवा हमारे गुरुकुल के शिष्यों की तरह गंजे सिर रहना पसंद करते हैं। कल से वे हमारे सड़क पर थूकने व किसी भी खाली प्लॉट या कोने में लघुशंका करने के कर्म की भी नकल करने लग जाएँ तो आश्चर्य न करें।  
     अब वहाँ हाल ही में संपन्न हुए राष्ट्रपति चुनाव को ही लें। हमारे यहाँ पिछले लोकसभा चुनाव में अबकी बार-फलां की सरकार का नारा चलते देख स्वयं वहाँ के एक उम्मीदवार ने बिना कोई रॉयल्टी दिए हमारे सर के चुनाव अभियान की नकल करते हुए अबकी बार- ट्रंप सरकार का नारा दिया और मैदान मार लिया। जब वहाँ के उम्मीदवार ने भारतीय उम्मीदवार की नकल की तो वहाँ की जनता भी भला क्यों पीछे रहती? महाजनो येन गतः स पंथालिहाजा जिस तरह हमारे यहाँ अबकी बार.... का नारा देने वाले की उम्मीदवारी पर कुछ लोगों द्वारा संवैधानिक अधिकारों, कर्तव्यों व लोकतांत्रिक मूल्यों को ताक में रखकर उनके विजयी हो जाने पर देश छोड़ देने की धमकियाँ दी जा रही थीं, तत्कालीन पीएम द्वारा अहमदाबाद की गलियों में दंगे होने और एक पार्टी उपाध्यक्ष द्वारा बाईस हजार लोगों की हत्या हो जाने की आशंका व्यक्त की जा रही थी, वही हाल अमेरिका का है। वहाँ विजयी उम्मीदवार की उम्मीदवारी के समय देश की अर्थव्यवस्था चौपट होने, मुस्लिम राष्ट्रों से संबंध खराब होने व आर्थिक असमानता बढ़ने की आशंकाएँ तो व्यक्त की ही गईं, बल्कि प्रजातांत्रिक तरीके से विजयी हो जाने के बाद भी उनका विरोध, बल्कि हिंसात्मक विरोध अभी तक जारी है।  
     विरोध प्रदर्शन के लिए पुतले जलाना हमारी सदियों पुरानी परंपरा है। देवी सीता के हरण के लिए हमने महाप्रतापी राजा रावण को आज तक माफ नहीं किया है व हम उनके साथ उनके भ्राता कुंभकरण व पुत्र मेघनाथ के पुतले हर साल दशहरे पर समारोहपूर्वक जलाते आ रहे हैं। राजनीतिक पार्टियाँ तो सत्तापक्ष वालों के पुतले आए दिन जलाने की घोषणा करती रहती हैं। पुतला दहन करके विरोध प्रकट करने के हमारे इस प्रजातांत्रिक तरीके की भी नकल करना अब उन्होंने शुरू कर दी है। लोकतांत्रिक पद्धति से चुने गए उम्मीदवार का जैसा यहाँ विरोध, वैसा ही वहाँ विरोध! संविधान यहाँ भी आहत हुआ हुआ था और वहाँ भी आहत हो रहा है।
     अब बात ओपिनियन पोल की। जिस तरह मतदाता के मन की बात को हमारे ओपिनियन पोल वाले कभी भी सही सही नहीं पकड़ पाते हैं वैसे ही अपने मन की बात किसी को नहीं बताने की कला अमेरिकी भी हमसे सीख गए हैं। हर ओपिनियन पोल में बताया गधे वाले को आगे, मगर तिलक लगाया हाथी के भाल पर!
     सुना है कि वहाँ नए सैम अंकल जिनकी पार्टी का चुनाव चिह्न हाथी है,  काम संभालते ही सबसे पहले  हाथियों की मूर्तियाँ खरीदने के लिए भारत का दौरा करने वाले हैं। उन्हें मेरी सलाह है कि भारत में यूपी में शीघ्र होने जा रहे विधानसभा चुनाव तक उन्हें रुक जाना चाहिए। यहाँ बहिन जी अगर जीत गईं तो वे स्वयं पूरे अमेरिका को हाथी की मूर्तियों से भर देंगी और न जीत पाईं तो जीतने वाला बहिन जी द्वारा पहले स्थापित की गईं तमाम मूर्तियाँ उन्हें मुफ्त उखाड़कर ले जाने की अनुमति दे देगा।       
     सुत्रों के हवाले से ज्ञात हुआ है कि व्हाइट हाउस में नए किराएदार के आते ही हमारे पीएम सर अपने अगले अमेरिकी दौरे पर अपने चुनावी नारे के इस्तेमाल के एवज में नए निवेश के लिए दबाव बना सकते हैं।                                    
                                                           ***

100, Ramanagar Extension, Dewas, 455001, MP

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