व्यंग्य
शिक्षकविहीन स्कूल से एकलव्य जन्म लेते हैं!
ओम वर्मा
भले ही कुछ देश
ड्राइवरविहीन कार बनाने व चलाने का दावा कर रहे हों, भले ही कुछ देशों को पायलटविहीन हवाईजहाज बनाने का जुनून सवार
हो, भले ही उन्होंने बड़े बड़े रोबोट बना दिए हों, मगर ये सारी तरक्कियाँ, ये सारी ईजादें मुझे तब
तुच्छ लगीं जब मालूम हुआ कि हमारे सूबे में 4837 स्कूल बिना शिक्षकों के ‘सफलतापूर्वक’ चल रहे हैं। चल रहे हैं मतलब वहाँ
परीक्षाएँ हुई हैं, परीक्षाएँ हुई हैं मतलब वहाँ पढ़ाई हो रही
है और पढ़ाई हो रही है मतलब पढ़ाने के लिए कोई तो अमूर्त शक्ति वहाँ है…! और सबसे बड़ी बात यह कि वहाँ मध्याह्न भोजन भी तो ‘खाया’ मेरा मतलब है, ‘खिलाया’ जा रहा होगा।
लेकिन अपने राम को ऐसी टेढ़ी बातें
आसानी से कभी भी समझ में नहीं आतीं! एक तरफ तो सरकार ‘चलो स्कूल चलें हम’ का
नारा भी दे रही है और वहीं प्रदेश के 4837 स्कूल बिना शिक्षकों के दौड़े चले जा रहे
हैं। सोचा क्यों न लालबुझक्कड़ जी से इस बारे में जानकारी ली जाए। लालबुझक्कड़ जी
हमेशा की तरह ऐसी मुद्रा में दिखाई दिए जिसे सत्तापक्ष ‘चिंतन’ और प्रतिपक्ष ‘चिंता’ का नाम
देता आया है।
“लालबुझक्कड़ जी यह कैसे संभव है
कि जिस राज्य में सरकार काम के इतने बड़े बड़े दावे करे, और जिसे वहाँ की जनता लगातार तीन बार
सर-आँखों पर बिठा चुकी हो वहाँ तीन साल से शिक्षकविहीन स्कूलों की संख्या बढ़ते
बढ़ते 4837 हो जाए...”, मैंने किसी आक्रामक टीवी एंकर की तरह
उनको अनुत्तरित करने का प्रयास करते हुए प्रश्न किया।
“तुमने एकलव्य और अर्जुन के बारे
में सुना है?” लालबुझक्कड़ जी ने
चिंतन शिविर से लौटे राजनेताओं की तरह गहन निष्कर्ष का मोती फेंका, “गुरु द्रोणाचार्य से सीखने वाला अर्जुन श्रेष्ठ धनुर्धारी बना जरूर, मगर वह सेर था तो उसका सवा सेर उधर गहन वन के ऐसे ही किसी बिना गुरु जी
वाले गुरुकुल में तैयार हो रहा था कि नहीं?”
“लेकिन उसने तो पत्थर को अपना
गुरु मानकर शिक्षा प्राप्त की थी।“
“इक्ज़ैक्ट्लि! यही अब हो रहा है। जिस
तरह राजा की चरणपादुकाएँ सिंहासन पर रखकर चौदह वर्ष शासन चलाया जा सकता है, जिस तरह नेत्री की तस्वीर बीच
में रखकर
मंत्रिमण्डल की मीटिंग की जा सकती है और
जिस तरह एक शिष्य अपने कोचिंग केंद्र में प्रवेश न देने वाले गुरु की पाषाण
प्रतिमा स्थापित करके ही विद्यार्जन कर सकता है, उसी तरह हमारे ये 4837 स्कूल हैं। सरकार बहुत दूरदर्शी है।
उसे पता है कि असली एकलव्य इन शिक्षकविहीन स्कूलों से ही निकलने वाले हैं। और देख
लेना ये सारे एकलव्य इन द्रोणाचार्यों वाले स्कूलों से निकलने वाले सारे अर्जुनों
पर भारी पड़ेंगे! आगे राष्ट्र निर्माण की कई मुख्य धाराओं में शीर्ष पर इन्हीं 4837
विद्यालयों से निकले विद्यार्थियों का बोलबाला रहेगा। इन विद्यालयों से निकले सारे
विद्यार्थी स्वनिर्मित यानी पूरी तरह से मौलिक होंगे। इन पर किसी कंपनी या विचारधारा
का ठप्पा नहीं लगा होगा। वैसे भी पढ़ लिखकर ज्यादा से ज्यादा बीरबल तक पहुँच सकते
हो और बिना पढ़े लिखे अकबर भी बन सकते हो। यह भी हो सकता है कि जिस तरह नमो सर
चुनाव की सभा में एक जगह बोलते थे और बीसियों सभाओं में दिखाई देते थे, उसी तरह हो सकता है कि एक स्कूल
में पढ़ाने वाला शिक्षक कई स्कूलों में आभासी शिक्षण कर रहा हो।
मेरे ज्ञानचक्षु खुल गए। सोचता
हूँ कि मैं भी क्यों हर बात पूछने के लिए लालबुझक्कड सर के आगे पीछे भागता फिरूँ? जब आभासी गुरु से एकलव्य तैयार हो सकता है, बड़े बड़े कोचिंग संस्थानों में एक शहर में बैठा गुरु दूर के शहरों में
टीवी कांफ्रेंस के जरिए पढ़ा सकता है तो एक प्रगतिशील राज्य में कुछ प्राथमिक
विद्यालय बिना शिक्षक के क्यों नहीं चल सकते? मैंने भी सोच
लिया है कि अगली बार कुछ पूछना हुआ तो घर पर
एल. बी. सर की प्रतिमा स्थापित करके ही पूछ लूँगा। कामना करता हूँ कि बाद
में द्रोणाचार्यों से इन एकलव्यों के अँगूठे न माँग लिए जाएँ।
***
100,
रामनगर एक्सटेंशन, देवास 455001
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