व्यंग्य
हिरदय-परदेस में सेफ़-हाउस
वह दिन दूर नहीं जब देश के हिरदय के ऐन बाजू में बसे प्रदेश को ‘लवप्रदेश’ के नाम से भी जाना जाएगा। नहीं, इस लव का मतलब लव-कुश वाला नहीं। वो तो पहले वाले ‘भिया’ के समय ही संभव था, क्योंकि पौराणिक केरेक्टर्स पर तो उन्होंने ही रुमाल धर रखा है। ये लव तो अभ्भी वालों का है। इनके जमाने में खालिस मुहब्बत वाले लव की ही बात संभव है।
सुना है...और अखबार में पढ़ा भी है कि ‘सरकार बहादुर प्रदेश के हर जिले में ‘सेफ़-हाउस’ बनवाने जा रहे हैं।‘ नहीं, यह सेफ़, सैफ अली खान वाला नहीं है, लेकिन तत्वतः चरित्र के मामले में है कुछ-कुछ वैसा ही। यह सेफ़ सुरक्षा वाला है, जिसमें प्रेमी जोड़ों को उनके परिजनों से सुरक्षा दी जाएगी। यह वह पहला राज्य बनने जा रहा है, जहाँ “हम प्यार में जलने वालों को, चैन कहाँ, आराम कहाँ ... और “दोनों किसी को नज़र नहीं आएँ,चल दर्या में डूब जाएँ...” टाइप के नैरेटिव बदलकर अब “प्यार कर लिया तो क्या, प्यार है ख़ता नहीं... ” या “प्यार किया तो डरना क्या, प्यार किया कोई चोरी नहीं की...” हो जाएगा। पहली बार किसी राज्य सरकार ने प्यार करने वालों की सुध ली है, वर्ना तो घर, समाज या दल-दुल वालों ने आज तक पिटाई कर-करके इन्हें बेसुध ही किया है। सरकार बहादुर ने घर से भागकर सुरक्षित रूम ढूँढ़ने की चिंता से प्रेमी जोड़ों को मुक्त करते हुए हर जिले में चौमंज़िला सरकारी प्रेमाश्रय ‘सेफ़ हाउस’ बनाने का बीड़ा उठा लिया है। ये बीड़ा उठाने का कीड़ा सरकारी बज़ट पर कित्ता भारी पड़ेगा, ये तो समय भी नहीं बता पाएगा। क्योंकि समय कुछ बताए, उससे पहले समय की ही फ़ाइल निमटा दी जाएगी।
कहीं भविष्य में ऐसे दृश्य न उपस्थित हों कि लड़के-लड़की में टिक-टॉक हुआ।(जी हाँ, इश्क ने आजकल यही टेक्निकल नाम रखा है। इसमें कुछ नई सी फ़ीलिंग है।) तो दोनों में टिक-टॉक हुआ। घर वालों का विरोध हुआ। दोनों भागकर ‘सेफ़-हाउस’ पहुँच गए। वहाँ पुलिस अंकल तो हैं, मगर उन्हें पकड़कर उनके माँ-बाप को सौंपने के लिए नहीं, बल्कि माँ-बाप को पकड़कर अंदर करने के लिए। पंडित, मौलवी या फ़ादर उनका मांडा कराने के लिए तैयार खड़े होंगे। और कन्यादान कर रहे होंगे स्वयं ओनली...जिले के एसपी साहब।
तो अगर बॉबी पिच्चर के नायक-नायिका की तरह कोई युगल भागा तो कोई प्रेम चोपड़ा बीच में “प्रेम नाम है मेरा...” बोलकर डरा नहीं पाएगा।‘प्रेमिल’ जोड़े को तो सेफ़-हाउस पहुँचा दिया जाएगा और ‘प्रेम’ नाम वाले चोपड़ा को हवालात वाले सेफ़-हाउस।
प्रेम के संदर्भ में यदि श्रेणियों में बाँटा जाए तो देश में राज्यों की दो श्रेणियाँ बनाई जा सकेंगी। एक वो राज्य जहाँ द्वापर युग में भगवान स्वयं रास रचाते थे और चार सौ साल पहले जहाँ एक शहंशाह ने प्रेम का भव्य स्मारक बनवाया था, मगर आज जहाँ पुलिस यानी ‘एंटीरोमियो स्क्वाड’ वाले प्यार करने वालों को पकड़ पकड़ कर उठक-बैठक लगवाते हैं और ‘बंद’ कर देते है। दूसरी श्रेणी में अब मध्यप्रदेश होगा जहाँ प्यार करने वालों के लिए पुलिस स्वयं पालक-पाँवड़े बिछाए तैयार खड़ी मिलेगी।
अपराध के आँकड़ों के साथ साथ पुलिस के कार्य के मूल्यांकन का एक आधार कहीं यह भी न हो जाए कि उनके थाने में कितने प्रेमी जोड़े आए। उन्हें 'टारगेट' भी दिया जा सकता है जिसे पूरा करने के लिए वे प्रेमी जोड़ों को खोजने भी निकल सकते हैं। 'सेफ़-हाउस' में रोज वेलेंटाइन-डे होगा। जो लोग लट्ठ-डे मनाते हैं, उन्हें फिर कोई और मोर्चा खोलना पड़ सकता है।
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