व्यंग्य
मेंढक-मेंढकी की पकड़वा शादी और धमकिया तलाक़
“सुना है तुम मुझे तलाक़ देने वाले हो?” मेंढकी ने कातर स्वर में टर्राते हुए पति मेंढक से कहा।
“कैसी बात करती हो पगली। रही तो आख़िर मेंढकी की मेंढकी ही न!” पति मेंढक ने जिसके कि स्वर में धीरे धीरे पतियों सी गुर्राहट आने लगी थी, मंद्र सप्तक के स्वरों में टर्राते हुए आगे पूछा, “भले ही लोगों ने अपने स्वार्थ के लिए हमारा ‘पकड़वा विवाह’ करवाया है, मगर जब हमने अग्नि के सात फेरे ले लिए हैं और मैंने बाक़ाइदा इतने लोगों के सामने तुम्हारी माँग भरी है...तो अब हमारा भी तो फ़र्ज़ है कि हम उस पवित्र बंधन की लाज रखें।”
“यही तो मुझे चिंता है। मैं देख रही हूँ कि तुममें भी धीरे धीरे आदमियों के गुण आ रहे हैं तभी तो तुम वो पड़ोस के पोखर वाली मेंढकी से बहुत टर्रा-टर्राकर बातें कर रहे थे!” मेंढकी भी पत्नी वाली पर आख़िर आ ही गई।
अतिवृष्टि के कारण मेंढक भी इंसानों की दुनिया में इन दिनों बहुत ट्रोल हो रहा था। लिहाज़ा वह भी ऐसे मौके पर पत्नी को कैसे समझाना, यह कला सीख चुका था। तुरंत शायराना अंदाज़ में बोला,
“थामा है जो हाथ, निभाऊंगा जीवन भर,
नहीं सियासतदान कि बदलूँ एक रात में।“
“लेकिन सुना है कि वही लोग जिन्होंने हमारा वैदिक विधि से ब्याह करवाया था, अब हमारा तलाक़ करवाने के लिए हमें ढूँढ़ते फिर रहे हैं।” आईने में देखकर माँग सँवारते हुए सुहागन मेंढकी ने कहा।
“हाँ, आज तो पूरे तालाब में ही रात भर यह खुसुर पुसुर चल रही थी कि उन्होंने जिसका ब्याह किया था उसी दादुर दंपती की खोज की जा रही है। पहले तो बारिश करवाने के लिए हमारा ब्याह कर दिया, फिर हमारे भाग से थोड़ी ज़्यादा बारिश हो गई तो तलाक़ करवाने पर तुले हैं। यूँ तो सरकार ने ट्रिपल तलाक़ पर रोक लगा दी है, मगर वह भी एक खास मजहब को मानने वालों के लिए है, अब हमारा तो कोई धर्म न मजहब! हम किसके पास जाएँ!” पति मेंढक ने पत्नी मेंढक को जो कि इन दिनों ‘उम्मीद से’ थी, प्यार से निहारते हुए संगीतमय टर्राहट के साथ कहा।
“अब इनको कोई कैसे समझाए कि हमारे हाथ पीले कर देने से ये बारिश तो हो गई मगर ये अतिवृष्टि हमारे पुरखों के श्राप के कारण हुई है।” मेंढकी ने हाथ लहराते हुए कहा।
“पुरखों का श्राप? वो क्यों भला?” पति मेंढक इस बार सचमुच चौंक गया था।
“वो इसलिए कि इन्होंने सालों जीवविज्ञान की प्रयोगशालाओं में हमारे पूर्वजों का कत्ले-आम किया है। आज ये जीवविज्ञान सीखे हैं तो हमारे दम पर, इनकी बारिश होती है तो हमारे दम पर...अब हमारे बुजुर्गों की थोड़ी नाराजी भी तो सहो! और तो और इनकी स्त्री कभी ज़्यादा नखरे करने लगे तब उसकी भी हमें 'कभी न होने वाले जुकाम’ से तुलना की जाती हैं। चुनाव के समय गठबंधन करने के नाम पर जब ये सारे झगड़ालू लोग इकट्ठे होकर तुरंत बंधन तोड़ तोड़कर भागने लगते हैं तब भी हमारी उछल पाने की कला की मिसाल दी जाती है। आओ इससे पहले कि हमें ये तलाक़ करवाने के लिए पकड़कर ले जाएँ, हम हमें मिली शीतनिष्क्रियता की सुविधा का लाभ उठाते हुए ज़मीन में छिप जाएँ।”
और दोनों एक साथ पूरे एक सत्र के लिए हायबरनेट कर गए। सुत्रों के हवाले से ज्ञात हुआ है कि मुहल्लों की दशहरा समितियाँ भी उन्हें विवाह विच्छेद के लिए खोज रही हैं ताकि उनका रावण दहन रावण प्लावन में न बदल जाए।
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