Wednesday, 14 November 2012




व्यंग्य(पत्रिका 14/11/12)



                     व्यंग्य
                                  हाथी और चींटी
                                                   ओम वर्मा    om.varma17@gmail.com
वे खुद को या कहें कि अपनी टोली को हाथी मानते हैं और उनकी नाक में दम करने वाले एक सड़क छापशख्स को चींटी ...! चींटी है कि जरा भी डरने को तैयार नहीं ! हाथी और उसके महावत को तो यही समझ में नहीं आ रहा है कि ये कम्बख्त  चींटी आखिर चाहती क्या है । हाथी चींटी को मसल के रख देने की बात या सीधे शब्दों में कहें तो मारने की धौंस देता ज़रूर है, पर जितना वह चींटी पर धौंस जमाने की कोशिश करता है,उतना ही अपना हाथीपना खोता जा रहा है । हो सकता है कि किसी रोज हाथी हाथी न रहे और सफेद हाथीबनकर रह जाए जिनकी देश में पहले ही कोई कमी नहीं है ।    
       वो हाथी हाथी ही क्या जो मद में न आए ! और वो चींटी चींटी ही क्या जिसके पर न निकल आएं ! फर्क़ सिर्फ इतना है कि हाथी जब मद में आता है तो इतना विध्वंसक हो जाता है कि मार दिया जाता है, जबकि चींटी में पर आने का मतलब जीवनकाल पूर्ण होना भर है । खुद को हाथी घोषित करने वाले सज्जन और उनके साथियों में जाहिर है कि मदमाने के लक्षण बढ़ते जा रहे हैं।
                 हाथियों के साथ दिक्कत यह है कि वे खाते भी जमकर हैं और उजाड़ते भी बहुत हैं । अपने वज़न से आधा वज़न भी बड़ी मुश्किल से ढो पाते हैं । और खुद तो भरपूर जगह घेरते ही हैं दूसरों के लिए कभी स्पेसरखना ही नहीं जानते । वहीं चींटी अपने वज़न से कई गुना अधिक वज़न ढो सकती है । चींटियाँ इकिडना’(Echidna)या स्पाइनी एंट ईटर जैसे ऑस्ट्रेलियन स्तनपाई प्राणी के आहार के काम भी आती हैं । हाथियों का उजाड़ करने में विश्वास है जबकि चींटी समाजिक सह जीवन की शिक्षा देती हैं ।
        यह सही है कि किसी युग में एक हाथी के बच्चे ने अपना शीश देकर भगवान श्री गणेश को नवजीवन दिया था । मगर आज के हाथी खुले आम दूसरों के शीश काट लेने की धौंस देने लग गए हैं । मेनका गांधी के जीव-दया आंदोलन से पूर्व हाथी सर्कसों के भी अनिवार्य अंग हुआ करते थे जिसकी पूर्ति इन स्वयंभू हाथियों ने पिछले दिनों सर्कसों सी  कलाबाज़ियाँ दिखा-दिखाकर कर दी है। वे हाथी सचमुच किसी के साथी भी हुआ करते थे जबकि ये हाथी फौज़ के उन पगलाए हाथियों की तरह हैं जिनसे खुद अपनी ही फौज़ के मारे-कुचले जाने का अंदेशा बना हुआ है ।
           हे प्रभु ! चींटियों से इन हाथियों की रक्षा करना ! मैंने सुना है कि अगर चींटी कान के रास्ते अगर हाथी की नाक में प्रवेश कर जाए तो झूम-झूमकर चलने वाले गजराज को 'सड़क छाप' बनते देर नहीं लगती ।

                   100, रामनगर एक्सटेंशन,देवास(म.प्र.)455001 

No comments:

Post a Comment