Wednesday, 14 November 2012




व्यंग्य (नईदुनिया,14/11/12)
      
        फटाके बीनने वाले छोटूऔरबारीक      
                    ओम वर्मा om.varma17@gmail.com
क्ष्मी जी कल रात अपना परंपरागत दीपावली भ्रमण पूर्ण कर पुनः कमल पर विराज गई हैं। इस बार की आतिशबाज़ी और बाज़ार की रौनक देखकर उन्हें भी लगा कि इस जंबूद्वीप में बहुत समृद्धि आ चुकी है। उन्हें आगे से शायद और दौरों की जरूरत नहीं पड़ेगी। अब यहाँ आगे से कोई लेखक अपनी कृति का जहाँ लक्ष्मी क़ैद है’’ जैसा शीर्षक नहीं दे पाएगा और बरोबर करने का धंधा करने वाले चोचलिस्ट (जिस देश में गंगा बहती है में राजकपूर का डाकुओं के लिए कथन ) कोई और कारोबार करने पर मजबूर हो जाएँगे।
     माते शयन प्रारंभ करने ही वाली थीं कि उनकी नज़र तीन-चार बच्चों पर पड़ गई। बच्चों के तन पर दीवाली मना चुके बच्चों की तरह ड्रेस नहीं, कपड़े थे; कंधों पर बेग नहीं, थैलियाँ थीं, और पैरों में शूज़ नहीं बल्कि लूज़ चप्पलें थीं जिनका प्रायोजक ज़ाहिर है कि कोई और था। उनके कपड़ों से मुझे बचपन में रामदुलारे सर की बेंत की मार याद आ गई जो श्रुत लेख में मैली-कुचेली के स्थान पर मेली-कुचेली लिख देने के कारण पड़ी थी। उनके सिर के बाल किसी रॉक स्टार या अलबर्ट आइंस्टीन के बालों की तरह थे। वे प्रसिद्ध आर्कियोलाजिस्ट स्व. श्री वाकणकर की तरह भूमि पर कुछ खोज रहे थे। अकस्मात एक लड़के को कुछ हाथ लगा जिसे लेकर पहले तो वह आर्किमिडिज़ के यूरेका-यूरेका की तर्ज़ पर पारदर्शिता के सिद्धांत का समर्थन कर रही रिक्त स्थान युक्त व यूपीए की तरह अनेक थिगड़ों से निर्मित चड्डी की परवाह किए बिना मिल गया-मिल गया चिल्लाता हुआ भागा, फिर उसे अपनी जेब में डाला। उसके हाथ एक बगैर फुस्स हुआ फटाका जो लग गया था।
         देश में ऐसे कई छोटू और बारीक हैं जो दीवार फिल्म की स्टाइल में भले ही आज भी फेंके हुए पैसे नहीं उठाते हों मगर जिनके लिए दीवाली का मतलब आज भी फेंके हुए या न चल पाए फटाके उठाना ही है। कचरा इनके लिए सचमुच लक्ष्मी जी द्वारा भेजी गई कृपा ही है जिसके लिए उन्हें किसी भी बाबा के किसी भी बैंक खाते में कोई शुल्क जमा नहीं करना पड़ता ! कचरे में से भी “सार सार को गही लेय, थोथा देय उड़ाय...” सूक्ति को चरितार्थ करते ये आशावादी बच्चे बत्तीस रु. रोज की गरीबी की सीमा रेखा को भी ठेंगा दिखाते हुए अमावस्या को भले ही न मना पाए हों, पर आज इन्हें दीवाली मनाने से वर्तमान व पिछली सरकार को जेब में रखने का दावा करने वाला कोई अरबपति भी नहीं रोक पाएगा।
        बच्चों के चेहरों पर जिस परमानंद की प्राप्ति के भाव लक्ष्मी माता ने देखे वैसे रात्रि भ्रमण में उन्हें कहीं नहीं दिखाई दिए थे। कुछ पल उन्हें निहारने के बाद  उनके हौसले को असीसती हुई आखिर वे कमलासन की ओर प्रस्थान कर ही गईं।
       शुक्र है कि खुशी के कुछ पल चुरा लेने के लिए थोड़ी स्पेस कुदरत ने आखिर इनके लिए भी तो छोड़ी है।                                                            
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            100,रामनगर एक्सटेंशन, देवास 455001(म प्र )                                



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