व्यंग्य ‘पत्रिका’ 27/11/12 में प्रकाशित
‘केजरीवाल और राखी’– तुलनात्मक अध्ययन
ओम वर्मा
दिग्गी राजा गहन शोध के बाद अंततः इस निष्कर्ष पर
पहुँचे कि ‘केजरीवाल राखी सावंत जैसी हरकतें कर रहे हैं।‘ मैंने भी उनसे
प्रेरणा ली और दोनों विभूतियों में पाई जाने वाली समानताओं पर एक लघु शोध तैयार
किया जिसके अंश प्रस्तुत हैं।
दोनों का वस्त्र विन्यास सादगीपूर्ण है। राखी बहिन ने अपने आयटम सांग्स में
कम से कम वस्त्रों में काम चलाया वहीं केजरीवाल भी कभी भी पूरी सजधज में नज़र नहीं
आए। सदा आधी बाँह की शर्ट पहनकर उन्होंने भी देश की वस्त्र समस्या को हल करने की
दिशा में राखी बहिन के महायज्ञ में अपना अर्ध्य ही अर्पित किया है। दोनों ने ही
छुपी हुई चीजों को अपने-अपने ढंग से ‘एक्सपोज़’ ही तो किया है !
राखी
बहिन ने गायक मीका को उसकी ‘सेंसरणीय’ हरकत के बावजूद भी
क्षमा कर दिया। उधर केजरीवाल जी ने भी फर्रूखाबाद प्रकरण में रुकावट डालने या ‘देख लेने’ की धौंस देने वालों
को माफ किया। जिस तरह केजरीवाल को न कभी एनडीए वाले समझ पाए न कभी यूपीए वाले।
यानी उन्होंने दोनों को ही ठेंगा दिखा दिया। उसी तरह राखी बहिन ने भी स्वयंवर जैसे
भव्य आयोजन में भी सभी दस-बारह ‘हसीं चीज के तलबगारों’ को धता बता दी।
दरअसल केजरीवाल व राखी बहिन दोनों की स्थिति आकाश में उड़ती उस पतंग की तरह है जिसे
बड़े-बड़े झाँकरे लेकर हर कोई लूटना चाहता है, मगर पतंग उसके हाथ आए उसके पहले ही या तो
कोई तीसरा उसे ले उड़ता है या वह तार-तार हो चुकी होती है।
दोनों
ही खुद को ‘आम आदमी’ बताते हैं। हालांकि दोनों को ही पता नहीं है कि वे कभी के आम से खास में
तब्दील हो चुके हैं। राजनीति के कुछ पुराने खिलाड़ी केजरीवाल को और फिल्मी पंडित
राखी सावंत को महज पानी का बुलबुला मानते हैं। केजरीवाल के कारण कुछ ‘बड़े लोगों’ के घरों में
स्लीपिंग पिल्स का स्टॉक भी बार बार खत्म हो जाता है, वहीं राखी बहिन ने
कई युवाओं व घर में बच्चों से नज़रें बचाकर उनका डांस देखने वाले बुज़ुर्गों की नींद
उड़ा रखी है। केजरीवाल के बिना आज का राजनीतिक व राखी बहिन के बिना आज की मनोरंजन
की दुनिया का परिदृश्य अधूरा है। उनसे कुछ लोग भले ही ज्यादा अपेक्षा न रखते हों, या वे अपेक्षित
परिणाम न दे पाए हों, पर दोनों की उपेक्षा भी संभव नहीं है।
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