Sunday 15 December 2013



व्यंग्य (नईदुनिया, 06.04.13)
         इनकी दाड़ियाँ आखिर कब कटेंगी ?
                             ओम वर्मा om.varma17@gmail.com
न तीनों में अलगू चौधरी और जुम्मन शेख से भी गाढ़ी मित्रता थी। तीनों को अक्सर राष्ट्रहित, जनहित, विश्व शांति व मानवता को प्रभावित कर सकने वाले हर ज्वलंत मुद्दे पर बहस- चिंतन करते देखा जा सकता था।
     तीनों की संत फक़ीरों की तरह बढ़ी हुई दाड़ियाँ देखकर मैं थोड़ा चौंका। पांचाली के केश खुले रखने, चाणक्य द्वारा चोंटी पर गाँठ बाँधने और इंदिरा गाँधी को चुनाव में हराने वाले राजनारायण जी द्वारा दाड़ी बढ़ाने के पीछे जाहिर है कि समय की धारा को मोड़ देने जैसे कोई संकल्प हुआ करते थे जिनके पूरे होने पर केश विन्यास हुएगाँठें खोली ग्ईं और समारोहपूर्वक दाड़ी बनवाई गई। तीनों ने  अपने संकल्पों के बारे में कुछ इस तरह बताया-
     रामलाल दिल्ली रेप काण्ड के बाद से पूरे देशवसियों की तरह व्यथित थे। स्त्री की अवमानना तो द्वापर और त्रेता युग में भी हुई थी। मगर आजकल अवमानना का स्थान हर दूसरे – तीसरे दिन होने वाले सामूहिक उत्पीड़न व बलात्कार (मीडिया की भाषा में गेंग रेप )ने ले लिया। लिहाजा रामलाल ने भी केश खुले रखने की तर्ज पर दाड़ी न बनाने की शपथ ली है। उनका  संकल्प है कि जब तक लगातार पूरे सात दिन बिना गेंग रेप की खबर वाले अखबार एकत्र न कर लें, दाड़ी नहीं बनाएँगे। उनके बैग में ऐसे सामूहिक अभियानों की ढेर सारी कतरनें भी थीं।   
     दूसरे मित्र मुहम्मद भाई से दाड़ी न कटवाने का राज पूछा तो वे कुछ इस अंदाज़ में बोले – “मैं अपने मुल्क में हो रहे नित घोटालों से हैरान-परेशान हूँ। विपक्ष वाले एक के पीछे हंगामा करें, धरने में लगे टेंट वाले की उधारी चुकाने वाले को ढूढ़ें उसकी पहले ही अगला घोटाला उजागर ! मैंने भी प्रण किया है कि अखबारों में जिस दिन भी घोटाले की खबरों में कम से कम एक सप्ताह का अंतर होगा तभी अपनी दाड़ी बनवाऊँगा। कतरनें इनके पास भी कुछ कम न थीं।
     तीसरे मित्र डिसूजा ने अपनी दाड़ी बढ़ाने का भी कुछ ऐसा ही ठोस कारण बताते हुआ कहा, “जिस दिन अखबार में देश व प्रदेश की राजधानियों में नेता द्वारा गाली गलौच की भाषा वाला या एक दूसरे को साँप बिच्छू व दीमक की उपाधि देने वाला, एक दूसरे के निजी जीवन या चरित्र पर लांछन लगाने वाला बयान या किसी के विवाह करने या न करने पर कोई अमर्यादित टिप्पणी नहीं मिलेगी, उस दिन ही दाड़ी बनवाऊँगा। इनके पास भी रामलाल व मुहम्मद की तरह कतरनों का ढेर था। जब तक दुष्कर्मी, घोटालेबाज़ और बयानवीर अपनाकर्म नहीं छोड़ते तब तक भाई राम, मुहम्मद और डिसूजा, अपना  संकल्प नहीं छोड़ने वाले!
     मुझे उम्मीद है कि मैं अपने जीवनकाल में एक बार इन तीनों को क्लीन शेव देख पाऊँगा।
आमीन !
                          ***

No comments:

Post a Comment