Tuesday 5 May 2015

बेटे के सवालों पर निरुत्तर पिता

    
     बेटे के सवालों पर निरुत्तर पिता
                                                 ओम वर्मा
पिताजी आपने तो कहा था कि यह देवभूमि है जहाँ स्वयं भगवान ने कर्म का उपदेश दिया है। विदेशों से भी शिष्य यहाँ आध्यात्मिक चिंतन करने और ज्ञान प्राप्त करने आते थे।
   “बिलकुल सही बात है बेटा! हमें विश्व गुरु ऐसे ही थोड़ी कहा गया है।
   “तो पिताजी राहुल गांधी अपना देश छोड़कर थाईलैंड चिंतन करने क्यों गए थे?
   “वे वहाँ गौतम बुद्ध द्वारा खोजी गई योग पद्धति विपश्यना का कोर्स करने गए थे।
   “पर पिताजी आपने तो बताया था कि बौद्ध धर्म हमारे देश में ही उपजा और फैला है तथा सम्राट अशोक के बेटे महेंद्र व बेटी संघमित्रा ने विदेशों में इसका प्रचार प्रसार भी किया था। फिर हमको इसकी कोई बात सीखने के लिए विदेश जाने की क्या जरूरत हैक्या यह उन्होंने ‘मेक इन इंडिया’ का विरोध करने के लिए किया है?
   “अरे तेरी समझ में नहीं आएगा पढ़ाई कर।” पिताजी को खुद समझ में नहीं आ रहा था तो वे बेटे को क्या समझाते। कान पर जनेऊ चढ़ाते हुए हमेशा की तरह मेन फ्रेम से क्विट कर गए। लौटे तो बेटा फिर पूछ बैठा।
  “पिताजी किसानों से मिलकर राहुल गांधी क्या बोले?”
  “उन्होंने बोला कि हम तुम्हारे साथ हैं।”
  “मतलब क्या वो भी उनके साथ खेती करेंगे?”
  “नहीं, लड़ाई में साथ देंगे।”
  “तो क्या अब किसान खेती छोडकर लड़ाई करेगा?
  “नहीं रे पगले! किसान तो खेती ही करेगा। पर उसकी लड़ाई अब राहुल गांधी  लड़ेंगे।”
  तभी उसकी नजर राहुल गांधी के फोटो पर पद गई। उनके कांधे पर हल था। देखते ही वो चिल्लाया, “समझ गया समझ गया। राहुल गांधी अब हल चलाएँगे।“        
    बेटे तो किसी तरह मान गया । अब उनकी अंतरात्मा भी सवाल कर बैठी। राष्ट्रीय पार्टी के उपाध्यक्ष व भावी अध्यक्ष का बजट सत्र में उपस्थित रहना या विपश्यना सीखनादोनों में से क्या ज्यादा जरूरी थाउनके विपश्यना ज्ञान से कौन लाभान्वित होगा - वे स्वयंपार्टीदेश या फिर तीनोंयात्रा में दो लाख तो आने जाने का ही लग गया होगा क्योंकि उनका  ‘केटल क्लास’ में यात्रा करने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता। फिर यह भी तय है कि थाईलैंड में उन्होंने किसी दलित के घर तो रात गुजारी नहीं होगीकिसी पाँच सितारा होटल में ही रुके होंगे। वहाँ उनका व सिक्युरिटी स्टाफ व विपश्यना केंद्र का खर्च मिलाकर एक करोड़ रु. से कम होने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता। अब एक करोड़ रु. खर्च कर किसानों के आगे आँसू बहाने से बेहतर होता कि यह राशि दस हजार किसानों में बाँट देते तो एक-एक हजार रु. प्रत्येक को मिल जाते। जो किसान पचहत्तर रु. का चेक पाकर भी दुआ दे सकता है वह हजार रु. पाकर तो इतनी दुआ देता कि उनको पीएम बनाए बिना चैन से नहीं बैठता। एक बार उन्हें किसी हिंदी शिविर में भी जाना चाहिए ताकि उनकी सभाओं में लोगों को ‘सात में से दस’ या ‘एक में से दो’ जैसी हिंदी न सुनना पड़े।
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