Thursday 3 March 2016

व्यंग्य -'कुली से सहायक तक', नईदुनिया , 04.03.16


व्यंग्य
                        कुली से सहायक तक
                                                                                            ओम वर्मा
ट्रेन से उतरकर मैंने कुली को आवाज देने के लिए  प्लेटफार्म पर नजर दौड़ाई तो एक भी बंदा नजर नहीं आया!
     रेल्वे प्लेटफार्म का नाम लेते ही जो पहला बिंब हमारे सामने आता है वह है बादशाह खान के लाल कुर्ती आंदोलन वाले खुदाई खिदमतगारों  का। कहाँ तो पहले जित देखूँ तित लाल वाला माहौल रहा करता था और कहाँ अब लाल रंग सिर्फ प्लेटफार्म पर मारी गई पान की या पान मसाले की पिचकारियों तक सिमट कर रह गया है। कहीं ये सारे लाल कुर्ते वाले साथी दिल्ली में कुछ लाल रंग वालों द्वारा चलाए जा रहे आज़ादी के आंदोलन में भाग लेने तो नहीं चले गए हैं या जेएनयू में नारे लगाने वालों की धरपकड़ के चलते अडरग्राउंड तो नहीं हो गए हैं?
     “बाबूजी सामान पहुँचाने के लिए सहायक चाहिए?’ एक श्वेत वसनी की आवाज ने मेरी विचार तंद्रा को भंग किया।
    “क्या आज कुलियों की हड़ताल है? और आप कौन हैं?” मैंने इस संदिग्ध मददगार से पूछा।
     “हम ही कल के कुली हैं बाबूजी जो प्रभु कृपा से अब सहायक हो गए हैं। उनके कुछ चेला लोग तो भगवा कमीज पहनने की के रिये थे पर नए पदनाम की इज्जत के वास्ते हमने सफ़ेदई अपना लिया।“
      ओह! अब समझा। मैंने सारा माजरा भाँपते हुए उससे सामान ले चलने के पैसे पूछे। सहायक ने जो पैसे बताए वह उससे ठीक डबल थे जो मैंने यहाँ से जाते समय इसी सामान के लिए कुली को दिए थे। दुनिया का दस्तूर है कि लोग काम का नहीं नाम का दाम वसूलते हैं। मंच पर स्थानीय कवि सौ रु. पाकर भी खुश हो सकता है और चुटकुलों में विश्वास रखने वाला कवि कई हजार रु.लेने के बाद ही मंच पर चढ़ता है। बहरहाल पैसे तय होने के बाद सहायक महोदय को लगेज दिखाया। मैं आगे बढ़ा और देखा कि वे बरात में डांस देखे बिना आगे नहीं बढ़ने वाली घोड़ी की तरह वहीं खड़े, बल्कि अड़े  हुए हैं।
    “रुक क्यों गए भाई क्या बात है?” मैंने चौंकते हुए सहायक जी से पूछा।
    “साहब हम सहायक हैं, कोई कुली नहीं। सहायक सहायता करने के लिए होता है, सारी दुनिया का बोझ उठाने के लिए नहीं। एक हाथ आपको भी लगाना पड़ेगा।“
     “मैंने चुपचाप एक हाथ लगाकर बाहर निकलने मैं ही भलाई समझी। बाहर आकर तुरंत पैसे दिए क्योंकि अब मुझे यह भय था कि कहीं वह यह न कह दे कि “सहायक प्रभु जी को आपकी शिकायत का ट्विट कंपोज़ करे उससे पहले उसका सहायता शुल्क मिल जाना चाहिए।“
     बहरहाल कुली को सहायक का दर्जा देना एक क्रांतिकारी कदम है। इससे जहाँ एक ओर सारे कुली स्वाभिमान की पहली पायदान पर पहुँच गए हैं वहीं वे लोग जिनके पदनाम में सहायक विशेषण नत्थी है आज राजनीति की हिट परेड में स्वयं को एक पायदान नीचे खिसका हुआ पा रहे हैं। कार्यालयों में हर सहायक स्टाफ की कमी के कारण काम के बोझ से इतना दबता जा रहा है कि स्वयं का कुलीकरण होता देख रहा है। वहीं मनमोहन देसाई इकबाल को लेकर बनी कुली व डेविड धवन के कुली नं. 1 फिल्मों  के निर्माण व सफलता के बाद से व प्रभु कृपा से सारे कुली स्वयं का सहायक में अपग्रेडेशन होता देख रहे हैं। अब मुल्कराज आनंद जी व मनमोहन देसाई जी भी स्वर्ग से आएँ और समय के साथ चलते हुए जैसे बंबई को मुंबई व कलकत्ता को कोलकाता किया गया है वैसे क्रमशः अपनी अंग्रेजी कृति कुली (COOLIE) का नाम असिस्टेंट व फिल्म का नाम सहायक कर दें। डेविड धवन भी अपनी फिल्म  कुली नं. 1 का नाम बदलकर सहायक नं. 1 कर दें।  
     कुलियों को अच्छे दिन मुबारक हों!
                                                  ***

100, रामनगर एक्स्टेंशन, देवास 455001 (म.प्र.) 

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