पुस्तक
समीक्षा
पुस्तक का नाम- दिनन दिनन के फेर
लेखक – लीलाधर मंडलोई
समीक्षक – ओम वर्मा
डायरी लेखन भी साहित्य की एक विधा
है जो अपेक्षाकृत कम प्रचलित है। इसका उपयोग यात्रा आख्यान लिखने में ज्यादा हुआ
है। अँग्रेजी साहित्य में वर्जीनिया वुल्फ़ और डोरोथी वर्ड्सवर्थ की डायरी बहुत
लोकप्रिय हुई हैं। इस विधा में तीसरी सबसे बड़ी लेखिका एन. फ्ऱेंक मानी जाती हैं।
उसी के परिवार के ऑटो फ्रैंक ने इसे ‘द
डायरी ऑफ़ ए यंग गर्ल’ नाम से प्रकाशित करवाया जिसका बाद
में अनेक भाषाओं में अनुवाद हुआ है। इसमें में 1942 से 1944 तक की उन घटनाओं का वर्णन है जब लेखिका का
बचपन हिटलर की हुकूमत का शिकार हुआ था। इसी दौरान उसके परिवार को जर्मन नाजियों से
छिपकर जिस तरह जीवन बिताता पड़ता है उसका वर्णन आज भी पाठकों पर जबर्दस्त प्रभाव
छोडता है।
पुस्तक में तिथिहीन डायरी के रूप में दर्ज़ टिप्पणियाँ
हैं जो 2004 से 2014 के मध्य लिखी गईं हैं। आवरण पृष्ठ पर वरिष्ठ कथाकार श्री
प्रभु जोशी ने एक वाक्य में पूरी पुस्तक का निचोड़ रख दिया है कि “मंडलोई के इस लिखे
- धरे में ढेरों अल्पाक्षरा,
लेकिन अर्थबहुला पंक्तियाँ हैं, जिनके बीच हमें ऐसी बहुतेरी
छूटी हुई जगहें बा-आसानी बरामद हो जाती हैं जहां डायरी लेखन की अचूक निस्संगता और
किसी एक को संबोधित पत्र लेखन की अलभ्य अंतरंगता एक दूसरे में एकमेक हो जाती हैं।“
। दरअसल यह पुस्तक न तो कोई कथा
संग्रह है और न ही कोई उपन्यास। हर पृष्ठ के बाद अगले पृष्ठ पर विचार किस फॉर्म
में सामने आएंगे इसे जानने की उत्सुकता बनी रहती है। कहीं गद्य में कविता की
अंतरलय व रवानी मिलती है तो कहीं छोटी सी टिप्पणी एक रूपांकन का मजा देती है।
पुस्तक
में कुल छह अध्याय हैं - ‘कवि
का डार्करूम’, ‘सूर्य के हमजोली’, ‘पेड़ और पक्षी’, ‘माँ और पास-पड़ोस’, ‘लोग दुनिया
में’, व ‘यमुना के पुलिन पर’। लेखक ने प्रारंभ में ही स्वयं एक कविता के माध्यम
से घोषणा की है कि -
“...जो यहाँ है
वही है मेरा लिखा हुआ
“और
उसे पढ़ने के लिए चाहिए एक गरीब की आत्मा
जिसे लिखते हैं वही लेखक
जिन्हें लेखक की
तरह नहीं जानते लोग...!”
लेखक की रचनाओं में कई प्रश्न उभरते हैं –
जैसे ‘कविता और कविमन’
(पृष्ठ संख्या 16)शीर्षक की टिप्पणी में वे लिखते हैं-
“शब्द वरदान
हैं
यदि
शब्दों को वापरने में हुई भूल
वे
तबाही मचा सकते हैं”
वे अपनी कविताओं को सृष्टि में खोजते हैं। कुछ प्रश्न
उन्हें मथते हैं जैसे- समय का बदलाव क्या है? मां का दुलार, पत्नी का प्यार, रसोई में सूखी रोटी से लेकर व्यंजनों की बौछार? भाषा, बोली, राग वगैरह-वगैरह सब क्या हैं? ये तमाम सवाल दार्शनिक से लगते
हैं पूछने पर, साधारण से लगते हैं चर्चा करने
पर और लिखा हुआ महसूस करते हैं सोचने पर। कहीं वे अपने अनुभवों को कविताओं के
माध्यम से व्यक्त करते नजर आते हैं। जैसे ‘और तुम नहीं हो’(पृष्ठ संख्या 33) शीर्षक वाली कविता में लीलाधर मंडलोई लिखते हैं—
‘देह उदास-सी और त्वचा
मुरझाने के सिम्त
रंग और रोशनी में कभी नहाया
तुम्हारा चेहरा रह-रहकर दीवार पर उभरता दीखता है।’
‘कहावतों की जमीन’ (पृष्ठ 43) शीर्षक टिप्पणी
में वे लिखते हैं—‘हमारे घुमक्कड़ चोखे कक्का मजेदार और सीख वाली कहावतों के
उस्ताद थे। ऐसी कई संस्मरणनुमा टिप्पणियाँ और उनसे जुड़ी कहानियां भी हैं। ‘मसालों
का आश्चर्य’ शीर्षक के संस्मरण में लीलाधर लिखते हैं—“मैंने मां, जीजी, पत्नी और बेटी के
साथ रसोई में जबरन घुस-घुसकर कई व्यंजन सीखे। कुछ अपने प्रयोगों से स्वाद को या तो
द्विगुणित किया या फिर नया स्वाद संभव किया। रसोई में बनती रचना प्रकि्रया के लिये
एक उस्ताद चाहिए। जैसे मां, बहन, बुआ, पत्नी या बेटी।“ किसी रम्य
रचना की तरह ‘पेड़ और पक्षी’
खंड की टिप्पणियों में तमाम प्रकृति से जुड़ी
चीजों का जिक्र भी है। इसमें ‘इमली’ शीर्षक से अपनी रचना (पृष्ठ 64)में बचपन में सुनी
कव्वाली पर चर्चा करते हुए वे कैफ भोपाली के शे’र -
‘तुमसे मिलके इमली मीठी लगती है/
तुमसे बिछड़के
शहद भी खारा लगता है।’
को याद करते हुए उनका
संस्मरण है जिसमें इमली के पेड़, फल
व बीज से जुड़ी स्मृतियों को सँजोया है। जीवन दर्शन पर एक कविता ‘घर, भूलना और याद’(पृष्ठ 90) में
लीलाधर मंडलोई लिखते हैं -
“मैं याद करने के
लिए
याद करते हुए
भूल जाता हूं
मैं अच्छा करने
के लिए
भूल जाता हूं
भूलना एक सहज बात है…
चलो छोड़ो भी
इतनी याद ही काफी है।“
पूरे संकलन में लीलाधर अपने सहज प्रवाह से पाठक को बांधे रखते हैं। भाषा व शैली से रचनाकार के चिंतन के नए आयाम सामने आते हैं। साहित्य भंडार, इलाहाबाद से प्रकाशित 124 पृष्ठीय इस पुस्तक का मूल्य 500/- है। पुस्तकों का पाठकों से दूर होते जाने का एक कारण अधिक मूल्य होना भी है।
***
-ओम वर्मा, 100, रामनगर एक्सटेंशन, देवास 455001
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